Wishing everyone a very happy, prosperous and SAFE new year.
A tribute not only to Delhi victim but to all those who are dead or alive faced these kind of barbarism in their life......
वेदना
ख्वाबों के परिन्दे ने
नींद की चौखट पर
कुछ यूं दी दस्तक
लगा उजला सा समां
दूर तक बिखरी खुशियाँ
ना गम की कोई आहटआरज़ू को मिले पंख
ज़ज्बे को मिला होंसला
और उड़ने की हुई चाहत
होंसले अभी थे कुछ बढे
सुनी कुछ कदमो की चहल
और ख्वाब भी गये दहल
ख्वाब गये टूट और सामने
खड़ी थी मेरे हकीक़त
समाज के बंधनों की
हर मज़हब देता है इज्ज़त
पर न देता कोई मेरा हक
कठपुतली बन रह गयी बस
किसी ने जन्म से पहले ही
मिटा दिया मेरा वजूद
आखिर क्या था मेरा कसूर
अगर पार किया उस पड़ाव को
तो बेच दिया चंद पैसों में
आज फिर दिया मुझे मार
मेरी वेदना का ये अंत नही
है ये एक नई शुरुवात
हर रोज मुझे मारा जाता
कुछ हैवान उड़ाते हैं रोज
मेरी इज्ज़त की दावत
रूह के रहते हो गयी बेजान
चुप खड़े सब देखते रहे
सहारे के लिए न हाथ बढे
दिल से ने दो आंसूं बहे
रूह मेरी कुचली गयी
सिसकियाँ भी चुप हो गयी
साँसों ने भी दम तोड़ दिया
कल कोई और हुआ जुदा
आज हुई मैं विदा
कल कोई और होगा
आखिर मेरा कसूर क्या था ?