Tuesday, 19 June 2012

आखिर क्यों

आखिर क्यों हम इतने मतलबी हो गये 
इंसानियत को कहीं पीछे छोड़ गये
                 किसी को दुखी देख न गमगीन होते हैं हम
                 न किसी की खुशियों में शरीक होते हैं हम
दिल इतने सबके हो गये हैं तंग
खुद के सिवा कोई रहता न संग
                 माँ - बाप का दिया प्यार और सीख
                 इनको क्या माँ-बाप को भी गये भूल
प्यार की परिभाषा भी गयी बदल
जो भूख मिटाए बस वही सफल
                 दोस्ती का भी कुछ अलग है मिजाज
                 काम चला तो ठीक वरना न रहे साथ
 दुःख होता है बहुत ये देखकर
बदल गया इन्सान किस कदर
                 आखिर क्यों हम इतने मतलबी हो गये
                 इंसानियत को कहीं पीछे छोड़ गये ?

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